रविवार, 2 सितंबर 2007

भोपाल - 3 दिसंबर, 1984


3 दिसंबर, १९८४ - इस तारीख़ के शुरुआती घंटों में भोपाल ने उस त्रासदी को देखा था जो सुबह होते-होते दुनिया की सबसे बड़ी और दर्दनाक दुर्घटना में तब्दील हो गया. जिसके निशान आज भी उन मासूमों और अनाजान लोगों के जेहन और शरीर पर ज़िंदा हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं था. सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस दुर्घटना में लगभग तीन हज़ार जानें गईं. हज़ारों लोग स्थायी अपंगता और गंभीर बीमारियों की चपेट में आ गए. इन बीस बरसों में कोई 15 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है और सिलसिला जारी है.

पेरिस 1940


फ्राँस के लोगों को अपने सभ्यता पर बड़ा ही गर्व है और शायद यह बात हिटलर को पता था। यह तस्वीर सन् 1940 की है जब राजधानी पेरिस में नाज़ियों के प्रवेश को देख आम नागरिको के आँखों से आँसू छलक आए थे.

ख़त्म क्यों नहीं होता रोजी-रोटी के लिए संघर्ष?

क्या भूख से मरना, भूख का मरना है?

पानी पानी रे.......


इस देश के सारी नदियों का पानी अपना है, लेकिन प्यास नहीं बुझती ना जाने मुझे क्यूं लगता है -आकाश मेरा भर जाता है जब, कोई मेघ चुरा ले जाता है ।
हर बार उगाता हूं सूरज, खेतों को ग्रहण लग जाता है।।

गुरुवार, 17 मई 2007

जगह: (साईगाँव) वियतनाम, 1973


निक यूटी - एसोसिएट प्रेस के फ़ोटोजर्नलिस्ट के कैमरे में क़ैद किया गया वियतनाम युद्ध के त्रासदी को दरसाता चित्र.

जगह: त्रंग बंग (वियतनाम), जून 8, 1972 की सुबह


निक यूटी - एसोसिएट प्रेस के फ़ोटोजर्नलिस्ट के कैमरे में क़ैद किया गया वियतनाम युद्ध के त्रासदी को दरसाता चित्र.